Don't forget to Share, Like & Comment on this video<br /><br />Subscribe Our Channel Artha : https://goo.gl/22PtcY <br /><br />श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुर सुधारी<br />बराणु रघुवर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि<br />बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन कुमार<br />बल बुधि विद्या देहु मोहि, हरहु कलेश विकार<br />जय जय जय जय जय जय जय हनुमान <br />जय श्री राम <br />जय जय जय जय जय जय जय हनुमान <br />जय श्री राम <br /><br /> <br />जय हनुमान ज्ञान गुन सागर<br />जय कपीस तिहुँ लोक उजागर॥१॥<br />राम दूत अतुलित बल धामा<br />अंजनि पुत्र पवनसुत नामा॥२॥<br />महाबीर बिक्रम बजरंगी<br />कुमति निवार सुमति के संगी॥३॥<br />कंचन बरन बिराज सुबेसा<br />कानन कुंडल कुँचित केसा॥४॥<br />हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजे<br />काँधे मूँज जनेऊ साजे॥५॥<br />शंकर सुवन केसरी नंदन<br />तेज प्रताप महा जगवंदन॥६॥<br />विद्यावान गुनी अति चातुर<br />राम काज करिबे को आतुर॥७॥<br />प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया<br />राम लखन सीता मनबसिया॥८॥<br />जय जय जय जय जय जय जय हनुमान <br />जय श्री राम <br />सूक्ष्म रूप धरि सियहि दिखावा<br />विकट रूप धरि लंक जरावा॥९॥<br />भीम रूप धरि असुर सँहारे<br />रामचंद्र के काज सवाँरे॥१०॥<br />लाय सजीवन लखन जियाए<br />श्री रघुबीर हरषि उर लाए॥११॥<br />रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई<br />तुम मम प्रिय भरत-हि सम भाई॥१२॥<br />सहस बदन तुम्हरो जस गावै<br />अस कहि श्रीपति कंठ लगावै॥१३॥<br />सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा<br />नारद सारद सहित अहीसा॥१४॥<br />जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते<br />कवि कोविद कहि सके कहाँ ते॥१५॥<br />तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा<br />राम मिलाय राज पद दीन्हा॥१६॥<br />जय जय जय जय जय जय जय हनुमान <br />जय श्री राम <br />तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना<br />लंकेश्वर भये सब जग जाना॥१७॥<br />जुग सहस्त्र जोजन पर भानू<br />लिल्यो ताहि मधुर फ़ल जानू॥१८॥<br />प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माही<br />जलधि लाँघि गए अचरज नाही॥१९॥<br />दुर्गम काज जगत के जेते<br />सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते॥२०॥<br />राम दुआरे तुम रखवारे<br />होत ना आज्ञा बिनु पैसारे॥२१॥<br />सब सुख लहैं तुम्हारी सरना<br />तुम रक्षक काहु को डरना॥२२॥<br />आपन तेज सम्हारो आपै<br />तीनों लोक हाँक तै कापै॥२३॥<br />भूत पिशाच निकट नहि आवै<br />महावीर जब नाम सुनावै॥२४॥<br />जय जय जय जय जय जय जय हनुमान <br />जय श्री राम <br />नासै रोग हरे सब पीरा<br />जपत निरंतर हनुमत बीरा॥२५॥<br />संकट तै हनुमान छुडावै<br />मन क्रम वचन ध्यान जो लावै॥२६॥<br /> सब पर राम तपस्वी राजा<br />तिनके काज सकल तुम साजा॥२७॥<br />और मनोरथ जो कोई लावै<br />सोई अमित जीवन फल पावै॥२८॥<br />चारों जुग परताप तुम्हारा<br />है परसिद्ध जगत उजियारा॥२९॥<br />साधु संत के तुम